जो तू है सो मैं हूं, जो मैं हूं सो तू है।
न कुछ आरज़ू है, न कुछ जुस्तजू है॥
बसा राम मुझ में, मैं अब राम में हूं।
न इक है, न दो हैं, सदा तू ही तू है॥
५०.
हेलो री मैं लख्यो आजु को खेल बखान कहां लौ करे मत मोरी।
राधे के सीस पै मोर पखा मुरली लकुटी कटि में पट डोरी॥
बेनी विराजत लाल के भाल ओ चूनर रंग कसूम में बोरी।
मान के मोहन बैठि रहे सो मनावति श्री वृषभान किसोरी॥५०॥
४४.
केहि पापसों पापी न प्राण चलैं अटके कित कौन विचारलयो।
नहिं जानि परै ‘हरिचन्द’ कछू विधि ने हमसों हठ कौन ठयो॥
निसि आज हू हाय बिहाय गई बिन दर्शन कैसे न जीव गयो।
हत भागिनी आंखन सों नित के दुख देखबे को फिर भोर भयो॥४४॥
More Braj ke sawaiya/dohe
श्री कुंजविहारिणे नमः
॥राग विभास॥
कबहूं कबहूं मन इत उत जात याते अब कौन अधिक सुख।
बहुत भांतिन घत आनि राख्यो नाहिंतौ पावतौ दुःख॥
कोटि काम लावण्य बिहारी ताके, मुंहाचुहीं सब सुख लिये रहत रुख।
श्री हरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी कों, दिन देखत रहौ विचित्र मुख॥
Sri Haridas ji says, ‘Many times the mind gets distracted but there is no pleasure in that. I bring it back to my center, else this mind would make me very unhappy. Sri Banke Bihari’s divine beauty is so enticing and the greatest of pleasures. With wonder and adoration I look at my masters Sri Radha Rani and Sri Krishna.’
करनी बिन कथनी कथै, अज्ञानी दिन रात।
कूकर सम भूकत फिरै, सुनी सुनाई बात॥
Kabir Das says in this saakhi verse that a person who has heard wise sayings might be repeating them to others without really practicing the same, quite like a dog that barks without making itself understood.
A sadhak, a seeker, should be mindful to practice and should not preach without personal experience through practice. It is a waste.
४१.
अन्त रहौ किधौं अन्तर हौ दृग फारे फिरौं कि अभागिन भीरूं।
आगि जरौं या कि पानी परौं, अहओ कैसी करौं धरौं का विधि धीरूं॥
जो ‘घनआनन्द’ ऐसौ रूची, तो कहा बस हे अहो प्राणन पीरूं।
पाऊं कहां हरि हाय तुम्हें, धरनी में धंसूं कि अकाशहिं चीरूं॥
३२.
ब्रह्म में ढूंढ्यो पुरानन वेदन भैद सुन्यो चित चौगुने चायन।
देख्यो सुन्यो न कहूं कबहूं वह कैसे स्वरूप औ कैसे सुभायन॥
ढूंढत ढूंढत हारि परयो ‘रसखानि’ बतायो न लोग लुगायन।
देख्यो कहां वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटन राधिका पायन॥
This sawaiya verse illustrates poet Raskhan’s search for nirgun and sagun Brahman.