हरा रंग डारो, गुलाबी रंग डारो, बसंती बचा के
१. तुम तो कान्हा बड़े नटखट हो, मेरा गजरा बचा के, मेरी बिंदिया बचा के
हरा रंग डारो…
२. तुम तो कान्हा कहा नहीं मानो, मेरी चूड़ियां बचा के, मेरी मेंहदी बचा के
हरा रंग डारो…
३. तुम तो कान्हा बड़े रंग रसिया, मेरा हरवा बचा के, मेरी चुनरी बचा के
हरा रंग डारो…
४. तुम तो कान्हा बड़े हरजाई, मेरी पायल बचा के, मेरा बिछुआ बचा के
हरा रंग डारो
मत मारो नैनन की चोट, रसिया…
होरी में मोहे लग जायेगी
१. मैं तो नारि पराये घर की, पराये घर की, पराये घर की
तुम तो बड़े वो हो, हो रसिया, होरी में मोहे लग जायेगी
२. अब की बार बचाय गयी मैं, बचाय गयी मैं, बचाय गयी मैं
कर घंघटे की ओट, रसिया, होरी में मोहे लग जायेगी
३. मैं तो भरी लाज की मारी, लाज की मारी, हां लाज की मारी
तुम हो बड़े चितचोर, रसिया, होरी में मोहे लग जायेगी
४. रसिक गोवंद वहीं जाय खेलो, वहीं जाय खेलो, वहीं जाय खेलो
जहां तुम्हारी जोड़, रसिया, होरी में मोहे लग जायेगी
Playful Govind, go and play with your equal (Radha).
४२.
मोरपखा गल गुंज की माल किये बर बेष बड़ी छबि छाई।
पीत पटी दुपटी कटि में लपटी लकुटी ‘हटी’ मो मन भाई॥
छूटीं लटैं डुलैं कुण्डल कान, बजै मुरली धुनि मन्द सुहाई।
कोटिन काम ग़ुलाम भये जब कान्ह ह्वै भानु लली बन आई॥
४०.
संकर से मुनि जाहि रटैं चतुरानन चारों ही आनन गावैं।
जो हिय नेक ही आवत ही मति मूढ़ महा ‘रसखान’ कहावैं॥
जापर देवी ओ देब निह्हरत बारत प्राण न वेर लगावैं।
ताहि अहीर की छोहर्या छछिया भर छाछ पै नाच नचावैं॥

३६.
सूकर ह्वै कब रास रच्यो अरु बावन ह्वै कब गोपी नचाईं।
मीन ह्वै कोन के चीर हरे कछुआ बनि के कब बीन बजाई॥
ह्वै नरसिंह कहो हरि जू तुम कोन की छातन रेख लगाई।
राधिका जू प्रगटी जब ते तब ते तुम केलि कलानिधि पाई॥
Sawaiya verses are part of the rich literary heritage of Braj (Mathura-Vrindavan). They are dramatised in raslila performances.
३४.
द्वार के द्वारिया पौरि के पौरिया पाहरुवा घर के घनश्याम हैं।
दास के दास सखीन के सेवक पार परोसिन के धन धाम हैं॥
‘श्रीधर’ कान्ह भये बस भामिनि मान भरी नहीं बोलत बाम है।
एक कहै सखि वे तो लली वृषभान लली की गली के गुलाम हैं॥
३३.
सुनिये सब की कहिये न कछू, रहिये इमिया भव वागर में।
करिये व्रत नेम सचाई लिये जेहि सों तरिये भवसागर में॥
मिलिये सब सों दुरभाव बिना रहिये सतसंग उजागर में।
‘रसखान’ गोविन्द को यों भजिये जिमि नागरि को चित गागरि में॥

Raskhan says in this sawaiya verse:
Live your daily life normally, but keep your mind on Govind. Just as a village belle returning from the river, carrying pots full of water on her head is behaving normally with her friends, chatting, greeting, walking… Yet, her attention never leaves her water pots on her head. If she is not attentive to her pots, they could crash any time!